कोविड-19: अप्रासंगिक हुआ लोक उपक्रमों का रणनीतिक विनिवेश

कोरोनावायरस से उपजी वैश्विक महामारी कोविड-19 ने दिखा दिया कि सार्वजनिक लोक उपक्रम ना सिर्फ भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं बल्कि सामाजिक सरोकार से जुड़ी जिम्मेदारियों के निर्वहन में भी निजी और सार्वजनिक उपक्रमों की कोई तुलना नहीं। मुनिशंकर पाण्डेय लिख रहे हैं कि महासंकट ने हमें समझा दिया है कि सार्वजनिक लोक उपक्रमों के विनिवेश का विचार ना तो रणनीतिक रह गया है और ना ही प्रासंगिक
कोविड-19: अप्रासंगिक हुआ लोक उपक्रमों का रणनीतिक विनिवेश

नई दिल्ली: वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण दुनिया भर में आर्थिक मंदी अपने चरम पर पहुँच रही है. भारत में कोरोना के मामलों में लगातार बढ़ोत्तरी से जनता को लगने लगा है कि कोरोना विनाशकारी रुप धारण कर रहा है. ये ऐसा भय है जो सामाजिक-आर्थिक अनिश्चितता में वृद्धि का समानुपाती है. जैसे जैसे भय बढ़ेगा, ये अनिश्चितता भी बढ़ती जाएगी. आर्थिक गतिविधियों के थमने से जहाँ एक ओर बेकारी की वजह से सरकारों की आमदनी सीमित हो गयी वहीं लोक कल्याणकारी राज्य के रुप में स्वास्थ्य खर्च और आर्थिक गतिविधियों को गति देने के लिए कई प्रकार के प्रोत्साहन पैकेज देने से राजकोषीय घाटे का बढ़ना भी तय है. अन्तर्राष्ट्रीय रेटिंग्स ऐजेन्सी 'फिच' के अनुमानों की मानें तो व्यापक राजकोषीय घाटा और निम्न आर्थिक विकासदर के कारण भारत के ऋण-जीडीपी अनुपात के 70 प्रतिशत से बढ़कर 76 प्रतिशत हो जाने की आशंका मजबूत हुई है.

अनिश्चित माहौल में विदेशी सलाहकारों का एक धड़ा और भी सक्रिय हो गया है, जो भारत सरकार को उसके सार्वजनिक लोक उपक्रमों को औने-पौने दाम पर बेचने की सलाह देता रहा है. हांलाकि सार्वजनिक उपक्रमों के रणनीतिक विनिवेश की पूर्व परिस्थितियों में अब परिवर्तन आ गया है. विश्व अब अनिश्चितता के आर्थिक माहौल में प्रवेश कर गया है, ऐसे में बड़ें राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत के पास बड़े आकार के और दक्ष सार्वजिनिक उपक्रमों का होना अनिवार्य हो गया है.

अगर हम अब तक किये गये विनिवेशों का विश्लेषण करें, तो भारत सरकार ने एक मुश्त धन के अलावा कोई दीर्घकालिक राष्ट्रीय लाभ अर्जित नहीं किया है. जबकि सार्वजनिक उपक्रमों पर सरकारी नियन्त्रण से ना केवल सरकार के कल्याणकारी गतिविधियों में इनका उपयोग होता है बल्कि सार्वजनिक उपक्रमों के सहारे स्थानीय स्वदेशी उद्योगों और एमएसएमई का एक इकोसिस्टम तैयार करने में मदद मिलती है, जिससे बड़ें पैमाने पर रोज़गार का सृजन होता है और आर्थिक गतिविधियों का गति मिलती है. कोरोना महामारी के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार इस बात पर जोर दिया कि हमें इस महामारी से जो सबसे ज्यादा सीखने की बात है वो है 'आत्मनिर्भरता'. गाँव के स्तर से लेकर जिले फिर राज्यो के स्तर तक 'आत्मनिर्भरता'. इस आत्मनिर्भरता का मॉडल क्या होना चाहिये?

तो इसका जवाब है स्वदेशी, सहकारिता और सार्वजनिक उपक्रम. सभी सामरिक, स्वास्थ्य और शोध सहित बड़े निवेश के लिए सार्वजनिक उपक्रम, तो कृषि समेत ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास के आर्थिक गतिविधियों लिए सहकारी संस्थाये, और इन दोनों के बीच बने इकोसिस्टम में स्वरोजगार कर रहा युवा भारत. जो लोग ये तर्क देते हैं कि विदेशी निवेश के बिना भारत का विकास सम्भव नहीं उन्हे बारीकी से ये देखना चाहिये कि इसरो की तकनीकी दक्षता एंव कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भारतीयों के परिश्रम से आया है.

अब तक लगभग 100 सार्वजिनक उपक्रमों ने कुल  2,540 करोड़ का योगदान दिया है. जिसमें ओएनजीसी ने 300 करोड़, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने 225 करोड़, बीपीसीएल 175 करोड़, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन 120 करोड़, पेट्रोनेट एलएनजी ने 100 रु तो गोल इण्डिया ने 50 करोड़ के साथ अपने कर्मचारियों के 2 दिन का वेतन का भी योगदान दिया. इसी तरह प्रमुख सार्वजनिक बैंक के 2,56,000 कर्मचारियों  ने दो दिनो के वेतन के साथ लगभग 100 करोड़ रुपये का योगदान पीएम के राष्ट्रीय राहत कोष में  दिया. तो पावरग्रिड ने पीएम केयर फंड में 200 करोड़ रु का योगदान किया तो प्रधानमंत्री की अपील पर पाँच अप्रैल को रात "नौ बजे नौ मिनट अभियान" को सफल बनाने में भी अपना समुचित योगदान सुनिश्चित किया

आर्थिक विकास, बुनियादी ढांचे के विकास, संतुलित क्षेत्रीय विकास, मूल्य स्थिरीकरण जैसे आधारभूत बातों का ध्यान रखते हुए अपने स्थापना काल से ही 249 केन्द्रीय उपक्रम भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. इन्हें अगर भारतीय अर्थव्यवस्था का रीढ़ कहा जाय तो आतिशयोक्ति नहीं होगी. पेट्रोलियम, कच्चा तेल, कोयला, बिजली, इस्पात, खनन, दूरसंचार और परिवहन, बैंकिंग और रसद सेवाएं सहित सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में केन्द्रीय लोक उपक्रम योगदान कर रहे है. इनमें से कई कम्पनियां अपने-अपने क्षेत्र में अग्रणी और दक्ष है. आज लगभग 15.14 लाख (संविदा और आकस्मिक श्रमिकों सहित) के कार्यबल के साथ, लोक उपक्रम न केवल रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, बल्कि वे हर साल भारत सरकार के केंद्रीय खजाने में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. 2018-19 में यह आंकड़ा 3.68 लाख करोड़ रुपये था और इसमें लाभांश, ब्याज, कॉर्पोरेट टैक्स और जीएसटी शामिल थे. 2018-19 में कुल शुद्ध लाभ 1.43 लाख करोड़ रुपये का योगदान केन्द्रीय उपक्रमों ने किया. साथ ही कभी भी संकट के समय ये राष्ट्रसेवा में सबसे आगे नज़र आते है. शायद यही वो विशेषता है कि जब भी एअरइंडिया को बेचने की बात होती है तो देश का एक बड़ा हिस्सा 1970 के खाड़ी संकट से लेकर कोरोना महामारी तक में इसके योगदान को गिनाने लगते हैं. नागर विमानन मंत्रालय, भारत सरकार के अनुसार कोरोना महामारी में 26 मार्च से लेकर पाँच मई तक 4,51,038 किलोमीटर का सफर तय करते हुए एअर इंडिया, पवन हंस इत्यादि ने 465 फ्लाइट्स से 836 टन जरुरी सामानों को 'फ्लाइट्स आफ होप' के अन्तर्गत गन्तव्य तक पहुंचाया है. सिलसिला अब भी जारी है.

वहीं कोविड-19 के दौरान लाकडाउन में सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए भारतीयों के लिए विभिन्न सार्वजिनक उपक्रमों ने जो भूमिका निभाई है, वो सराहनीय है. जहाँ एक ओर पावर सेक्टर के एनटीपीसी, पीजीसीआईएल इत्यादि ने घरों, उद्योगों, अस्पतालों और चिकित्सा सुविधाओं को निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की. वहीं पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस तथा इस्पात मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के कुशल नेतृत्व में आइओसीएल, बीपीसीएल, गेल इण्डिया इत्यादि ने तेल और गैस की निरंतर आपूर्ति को बनाये रखा. वहीं स्टील इंडिया अथॉरिटी लिमिटेड, आरआइएनएल एंव एनएमडीसी ने अपने प्रयासों में कोई कसर बाकी नहीं रखी. वहीं स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने कोरोना वायरस की महामारी से लड़ने के लिए अपने पांच एकीकृत इस्पात संयंत्रों के पांच मुख्य अस्पतालों के सभी स्वास्थ्य केंद्रों में बड़ी संख्या में विभिन्ना स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई हैं. इसी तरह लगभग सभी प्रमुख केन्द्रीय उपक्रमों ने कोविड-19 से लड़ने के लिए अपने-अपने स्तर पर आइसोलेशन वार्ड, क्वारंटाइन फेसिलिटीज व आइसीयू बेड की व्यवस्था की. साथ ही स्व-सहायता समूहों के माध्यम से बड़े पैमाने पर मास्क का उत्पादन और वितरण में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं. जब प्रधानमंत्री ने कोरोना से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री केयर फण्ड पर दान की अपील की तो हमेशा की तरह सबसे आगे केन्द्रीय उपक्रम नज़र आये, अब तक लगभग 100 सार्वजिनक उपक्रमों ने कुल  2,540 करोड़ का योगदान दिया है. जिसमें ओएनजीसी ने 300 करोड़, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने 225 करोड़, बीपीसीएल 175 करोड़, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन 120 करोड़, पेट्रोनेट एलएनजी ने 100 रु तो गेल इण्डिया ने 50 करोड़ के साथ अपने कर्मचारियों के 2 दिन का वेतन का भी योगदान दिया. इसी तरह प्रमुख सार्वजनिक बैंक के 2,56,000 कर्मचारियों  ने दो दिनो के वेतन के साथ लगभग 100 करोड़ रुपये का योगदान पीएम के राष्ट्रीय राहत कोष में  दिया. तो पावरग्रिड ने पीएम केयर फंड में 200 करोड़ रु का योगदान किया तो प्रधानमंत्री की अपील पर पाँच अप्रैल को रात "नौ बजे नौ मिनट अभियान" को सफल बनाने में भी अपना समुचित योगदान सुनिश्चित किया.

जब भी एअरइंडिया को बेचने की बात होती है तो देश का एक बड़ा हिस्सा 1970 के खाड़ी संकट से लेकर कोरोना महामारी तक में इसके योगदान को गिनाने लगते हैं. नागर विमानन मंत्रालय, भारत सरकार के अनुसार कोरोना महामारी में 26 मार्च से लेकर पाँच मई तक 4,51,038 किलोमीटर का सफर तय करते हुए एअर इंडिया, पवन हंस इत्यादि ने 465 फ्लाइट्स से 836 टन जरुरी सामानों को 'फ्लाइट्स आफ होप' के अन्तर्गत गन्तव्य तक पहुंचाया है. सिलसिला अब भी जारी है

इसी तरह कोरोना के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में किसानों को निर्बाध रुप से खाद उपलब्ध करवाने में 'इफको' ने हमेशा की तरह योगदान जारी रखा. पूरे देश में खाद्यान्न की उपब्धता बनाये रखने में भारतीय खाद्य निगम ने भी सराहनीय भूमिका निभाई है तो देशभर में फैले छोटे-छोटे किराना की दुकानों ने दैनिक जीवन की जरुरत वाली वस्तुओं के वितरण को बनाये रखा जो स्वदेशी और विकेन्द्रीकरण का अनुपम उदाहरण है. तीन मई से पहले तक लाकडाउन अगर सफल रहा तो उसमें भारत की इसी स्वदेशी, सहकारिता और सार्वजनिक उपक्रम की तिकड़ी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यहीं वो बुनियाद है, जिस पर आत्मनिर्भर भारत का निर्माण सम्भव है.

(लेखक स्वतन्त्र पत्रकार और आर्थिक मामलों के जानकार है.)

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